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लेखनी प्रतियोगिता -16-Apr-2023 तेरा जाना

अनाड़ी फिल्म का एक गीत बहुत प्रचलित हुआ था "तेरा जाना , दिल के अरमानों का लुट जाना" आज बहुत याद आ रहा है । आज भारत के दो महान धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी, जन हितैषी , मृदुभाषी , नारीवादी , दलितों के मसीहा , लिबरल्स के प्यारे, मीडिया के दुलारे , संत शिरोमणि, शांतिदूत , भारत मां के सच्चे सपूत इस मृत्युलोक को छोड़कर , इस दुखभरी दुनिया से विदा लेकर 72 हूरों के साथ रंगरेलियां मनाने के लिए जन्नत की सैर को निकल पड़े हैं । यह दृश्य देखकर एक तरफ तो दिल टूटा जा रहा है और "दिल तड़प तड़प के कह रहा है आ भी जा तू रूठ के ना जा तुझे कसम है आ भी जा " तो वहीं दूसरी ओर प्रसन्न भी हो रहा है कि इन देवदूतों के पैर अब जन्नत की ओर मुड़ चुके हैं । इन्होंने 72 हूरों के दिलों में जगह बना ली है और वे 72 हूरें अपने अपने हाथों में जयमाल लिये बड़ी बेचैनी से इनका इंतजार कर रही हैं और गा रही हैं "आजा , आई बहार , दिल है बेकरार , ओ मेरे दिल के करार , तेरे बिना रहा ना जाये" । सुना है कि 72 हूरों में भयंकर जंग हो रही है कि मेरा वाला वो है और मेरा वाला ये है । हे भगवान, उन हूरों को थोड़ी सद्बुद्धि देना । 
हमारे घुटन्ना मित्र हंसमुख लाल जी हम पर बरस पड़े । कहने लगे कि आप उन्हें धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी वगैरह वगैरह किस आधार पर कह रहे हो ? 

हमने कहा "भैया हंसमुख लाल । थोड़ी शांति रखो , ऐसे उतावले मत बनो । इस देश में जो भी व्यक्ति एक मजहब विशेष में पैदा होता है वह जन्मजात धर्मनिरपेक्ष होता है । उसे धर्मनिरपेक्षता का न कोई टेस्ट देना पड़ता है और ना ही उसे किसी संस्था के किसी प्रमाण पत्र की आवश्यकता है । हां, यदि किसी दूसरे धर्म का कोई बंदा है तो उसे स्वयं को प्रमाणित करना होगा कि वह धर्मनिरपेक्ष है । यानि कि उसे अपने पहनावे और आचरण से बताना होगा । मसलन वह तिलक नहीं लगावेगा, कलावा नहीं बाधेगा।  जय श्री राम भी नहीं बोलेगा । राम कृष्ण को गालियां निकालेगा । इसके बाद उस बंदे का "की फैक्ट" चैक महान वैज्ञानिक मोहम्मद जुबैर की प्रयोगशाला में कराना होगा जहां विश्व के सबसे बड़े प्रकांड विद्वान प्रतीक सिन्हा द्वारा "लाई डिटेक्टर टैस्ट" से गुजरना होगा । उसके बाद लिबरल्स की प्रामाणिक संस्था से एक प्रमाण पत्र लेना होगा तब जाकर उसे धर्मनिरपेक्ष माना जायेगा । यहां तो वे दोनों महान प्राणी जन्मजात महा धर्मनिरपेक्ष थे । 

रही बात समाजवादी की तो इस देश में समाजवादी होने अथवा नहीं होने का एक ही पैमाना है कि वह व्यक्ति समाजवादी पार्टी का सदस्य है या नहीं ? इसके अतिरिक्त अन्य किसी पैमाने की आवश्यकता ही नहीं है । दोनों मरहूम प्राणी मरते दम तक समाजवादी पार्टी के सच्चे सिपाही बने रहे । कभी विधायक तो कभी सांसद रहे । समाजवादी पार्टी उन्हें सबसे बड़ा समाजवादी मानती है । आज भी सबसे अधिक आंसू समाजवादी पार्टी के ही निकल रहे हैं ना ? इससे बड़ा सबूत और क्या होगा उन्हें समाजवादी सिद्ध करने के लिए । 

यदि फिर भी तुम नहीं मानते हो तो मैं कुछ और तथ्य प्रस्तुत करना चाहूंगा । दोनों भाई अपने पूरे परिवार के साथ "रंगदारी" के खेल में व्यस्त थे । बेचारे दोनों भाई तांगा चलाने वाले के पुत्र थे । उन्होंने रंगदारी किससे मांगी ? जाहिर है सेठों से ही मांगी होगी, भिखारियों से तो मांगी नहीं होगी । सेठों से पैसे लेकर गरीब लोगों में बांटना ही तो समाजवाद है । इसलिए ये दोनों भाई जयप्रकाश नारायण से भी अधिक समाजवादी थे । "नेताजी" उनके कुत्ते से ऐसे ही हाथ मिला लेते क्या ? उनका कुत्ता भी समाजवादी था तभी तो नेताजी ने उस कुत्ते से मंच पर हाथ मिलाया था । क्या अभी कुछ और प्रमाण चाहिए"  ? 

हमारी बात से हंसमुख लाल जी संतुष्ट हो गये पर कोई कीड़ा फिर भी काट रहा था उन्हें, इसलिए बोले " धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी तो ठीक है पर जन हितैषी, मृदु भाषी कैसे हुए" ? 
उनकी मासूमियत पर हमें हंसी आ गई  "लो कर लो बात ! भैया , उनसे बड़ा मृदु भाषी तो कोई था ही नहीं । उनकी तो बंदूक बोलती थी , वे तो कुछ बोलते ही नहीं थे । वे तो केवल मुस्कुरा देते थे , बाकी काम तो तमंचा करता था । तो फिर, मृदु भाषी हुए या नहीं ? जो बंदा एक भी शब्द नहीं बोले उससे बड़ा मृदु भाषी और कौन होगा" ? 

"और जन हितैषी कैसे हुए" ? 

"दरअसल उन्हें मंहगी गाड़ियों का बहुत शौक था । कोई दस करोड़ की तो कोई चालीस करोड़ की । जनता ने इतनी मंहगी मंहगी गाड़ी ना कभी देखी और ना उनका नाम सुना । जनता के दिल की पुकार उन दोनों भाइयों ने सुन ली । बस, फिर क्या था ? दोनों भाई भक्त वत्सल थे । भक्तों के कल्याण के लिए वे सदैव तत्पर रहते थे । वे ऐसी दर्जनों गाड़ी खरीद लाये या हड़प लाये, पता नहीं  और 500 गाड़ियों का काफिला लेकर प्रयागराज की सड़कों पर जनता को खुश करने निकल पड़े  । इलाहाबाद विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर की भक्ति से इतने प्रसन्न हुए कि उन्हें दिन में ही उन्हीं के चैम्बर में जाकर "दर्शन" दे आये । जनता उनकी बात का विश्वास करे या नहीं इसलिए उसके गाल लाल कर आये जिससे वो बता सके कि हां प्रभु जी आये थे , दर्शन देकर गये और निशानी के रूप में गाल लाल कर दिये उन्होंने । कितने महान थे दोनों भाई ? उस दिन कोई होली का त्यौहार नहीं था लेकिन वी सी के साथ होली खेल आये दोनों भाई । ऐसे कृपानिधान थे दोनों भाई " । 

"भाईसाहब, वे नारीवादी कैसे थे , यह भी तो बताओ" ? 

"बड़े भोले हो हंसमुख भैया । यह भी नहीं पता ? वो तो पैदा होते ही "रासलीला" रचाने लगे थे । शहर के बीच चौराहे पर बैठ जाते थे और जब कोई सुन्दर सी "गोपी" आती , दोनों भाई दूर से ही उस पर अपना हक जता देते और कह देते , ये वाली मेरी है और वो वाली तेरी है । इस प्रकार इन्होंने न जाने कितनी गोपियों को उपकृत किया है अब तक । अब बताइये, ये दोनों महान प्राणी नारीवादी थे या नहीं" ? 

"पर भाईसाहब, ये दोनों मीडिया के दुलारे कैसे हुए" ? 

"यार , आप भी बहुत बुड़बक हो । आपको कभी मीडिया ने दिखाया है क्या आज तक ? इन महानुभावों का लाइव ट्रासपोर्टेशन चलता था सभी चैनल्स पर । इतना लाइव कवरेज तो प्रधानमंत्री, राजमाता, युवराज का भी नहीं चलता जितना इनका चलता था । और तो और इनका "मूत्र विसर्जन" भी लाइव दिखाया गया था । अब आप ही बताइये , मीडियावालों ने अपना और अपने बच्चों का भी कभी "मूत्र विसर्जन" ना तो लाइव दिखाया और ना रिकॉर्डेड  । अगर इसका दिखाया तो यह मीडिया का दुलारा हुआ कि नहीं" ? 

हमारे जवाब से हंसमुख लाल जी संतुष्ट नजर आये । शायद आगे और पूछने की हिम्मत शेष नहीं रही उनकी । हम दोनों बड़े कन्फ्यूज्ड हैं कि इन महान आत्माओं के जन्नत गमन कार्यक्रम पर रोयें या हंसे ? 

श्री हरि 
16 . 4. 23 

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2 Comments

Hari Shanker Goyal "Hari"

17-Apr-2023 07:24 AM

🙏🙏

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